रविवार, 31 जुलाई 2016

दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है संस्कृत

!!!---: दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है संस्कृत :---!!!
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संस्कृतृ-भाषा मनुष्य को जोडती है । यह राष्ट्रवाद को जन्म देती है । यह सबके सुख-दुःख का ध्यान रखती है । संस्कृत में ही आत्मिक, सामाजिक व शारीरिक विकास है । संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का आधार स्तम्भ है। संसार की समृद्धतम भाषा ‘संस्कृत’ के रूप में सबसे उन्नत मानवीय समाज और विज्ञान की स्थापना की गयी। इस देवभाषा के अध्ययन मनन मात्र से ही मनुष्य में सूक्ष्म विचारशीलता और मौलिक चिंतन जन्म लेता है। सनातन संस्कृति के सभी प्रमुख साहित्यिक और वैज्ञानिक शास्त्र संस्कृत भाषा में ही हैं।

मैकाले की दुष्ट-योजना
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भारतीय शिक्षण-शैली को समाप्त करने के बाद मैकाले द्वारा भारतीयों से ‘भारतीयता’ को नष्ट करने का जो षड्यंत्र रचा गया । दुर्भाग्य से हम उसमें बुरी तरह फँस गए । फलस्वरूप तथाकथित आधुनिक या आंग्लभाषी शिक्षा-पद्धति से शिक्षित लोग अज्ञानतावश संस्कृत को सिर्फ पूजा-पाठ और कर्मकाण्डो से जुड़ा मानकर अवैज्ञानिक तथा अनुपयोगी मानने लगे। जबकि वास्तविकता यह है कि यह भाषा महज साहित्य, दर्शन और अध्यात्म तक ही सीमित नहीं है,अपितु गणित, विज्ञान, औषधि, चिकित्सा, इतिहास, मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे अनन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

लंदन के सबसे बड़े स्कूलों में से एक सेंट जेम्स कान्वेंट स्कूल में,बच्चों का द्वितीयक भाषा के रूप में संस्कृत सीखना अनिवार्य है। भारत से विशेष तौर पर वहाँ संस्कृत के शिक्षकों की व्यवस्था की जाती है.ब्रिटिश शिक्षाविद डॉ. विल डुरंट के अनुसार “संस्कृत आधुनिक भाषाओं की जननी है। संस्कृत बच्चों के सर्वांगीण बोध ज्ञान को विकसित करने में मदद करती है।”

आधुनिक विषयों में संस्कृत में शोध
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ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कम्पयूटर क्षेत्र में भी संस्कृत के प्रयोग की सम्भावनाओं पर फ्रांस, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इंग्लैंड आदि विभिन्न देशों में शोध जारी है। वानस्पतिक सौंदर्य प्रसाधन (हर्बल कॉस्मैटिक्स) एवं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के तेजी से बढ़ते प्रचलन से संस्कृत की उपयोगिता और बढ़ गयी है क्योंकि आयुर्वेद पद्धतियों का ज्ञान सिर्फ संस्कृत में ही लिपिबद्ध है।

अपनी सुस्पष्ट और छंदात्मक उच्चारण प्रणाली के चलते संस्कृत भाषा को ‘स्पीच थेरेपी टूल’ (भाषण चिकित्सा उपकरण) के रूप में मान्यता मिल रही है। जर्मन शिक्षाविद् पॉल मॉस के अनुसार “संस्कृत से सेरेब्रेल कॉर्टेक्स सक्रिय होता है। अतएव किसी बालक के लिए उँगलियों और जुबान की कठोरता से मुक्ति पाने के लिए देवनागरी लिपि व संस्कृत बोली ही सर्वोत्तम मार्ग है। वर्तमान यूरोपीय भाषाएँ बोलते समय जीभ और मुँह के कई हिस्सों का और लिखते समय उँगलियों की कई हलचलों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है ।”

अब्दुल कलाम की यूनान-यात्रा
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साल 2007 में राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. अब्दुल कलाम यूनान गए थे।वहाँ के आधिकारिक स्वागत कार्यक्रम में ग्रीस के प्रेजीडेंट कार्लोस पाम्पाडलीस ने डॉ कलाम के लिए “राष्ट्रपति महाभाग सुस्वागतं यवनदेशे” , इस संस्कृत वाक्यसे अपने भाषण का प्रारंभ किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में संस्कृत का प्राचीन भारत और ग्रीक भाषा के सम्बन्ध के बारे में व्यापक प्रकाश डाला।

वैज्ञानिक कई दिनों तक ऐसी भाषा/लिपि के विकास में थे, जिसका संगणकीय प्रणाली में उपयोग कर,उसका संसार की किसी भी आठ भाषाओं मे उसी क्षण रूपांतर हो जाए। अंततोगत्वा ‘संस्कृत’ ही एकमात्र ऐसी भाषा नजर आई। फोर्ब्स पत्रिका 1985 के अंक के अनुसार दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है।

सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा में
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संस्कृत ही संसार की सर्वोत्तम भाषा है, जो संगणकीय प्रणालीके लिए उपयुक्त है। नासा की एक आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर की अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है,इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।

पूरी दुनिया संस्कृत की ओर दौड़ रही है
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अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, और जापान जैसे बेहद तकनीकि पूर्ण देश वर्तमान में भरतनाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। गौरतलभ है कि नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है । इसी तरह ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है। परन्तु हम भारतीय कुछ भी सीखने से पहले जबरन ENGLISH डकारने में लगे हैं.जबकि पूरी दुनिया संस्कृत की ओर दौड़ रही है.

संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन फोटोग्राफी” भी नहीं है.

संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यंत परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है। भारतीय वैज्ञानिकों को नव अनुसंधान की प्रेरणा संस्कृत से मिली. जगदीशचन्द्र बसु, चंद्रशेखर वेंकट रमण ,आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय, डॉ. मेघनाद साहा जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिकों को संस्कृत भाषा से अत्यधिक प्रेम था और वैज्ञानिक खोजों के लिए वे संस्कृत को ही आधार मानते थे।

वैज्ञानिक शोध संस्कृत भाषा में
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इनके अनुसार संस्कृत का प्रत्येक शब्द वैज्ञानिकों को अनुसंधान के लिए प्रेरित करता है। प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने विज्ञान में जितनी उन्नति की थी, वर्तमान में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। महर्षियों का सम्पूर्ण ज्ञान एवं सार संस्कृत भाषा में निहित है। आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय विज्ञान के लिए संस्कृत शिक्षा को आवश्यक मानते थे। जगदीशचन्द्र बसु ने अपने अनुसंधानों के स्रोत संस्कृत में खोजे थे। डॉ. साहा अपने घर के बच्चों की शिक्षा संस्कृत में ही कराते थे और एक वैज्ञानिक होने के बावजूद काफी समय तक वे स्वयं बच्चों को संस्कृत पढ़ाते थे।

आधुनिक विज्ञान सृष्टि के रहस्यों को सुलझाने में बौना पड़ रहा है। अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न मंत्र-विज्ञान की महिमा से विज्ञन आज भी अनभिज्ञ है। उड़न तश्तरियाँ कहाँ से आती हैं और कहाँ गायब हो जाती हैं इस प्रकार की कई बातें हैं जो आज भी विज्ञान के लिए रहस्य बनी हुई हैं। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों से ऐसे कई रहस्यों को सुलझाया जा सकता है।

दुःखों में संस्कृत का सहारा लें
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विमान विज्ञान, नौका विज्ञान से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हमारे ग्रंथों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार के और भी अनगिनत सूत्र हमारे ग्रंथों में समाये हुए हैं, जिनसे आधुनिक विज्ञान को अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण दिशानिर्देश मिल सकते हैं। आज अगर विज्ञान के साथ संस्कृत का समन्वय कर दिया जाय तो अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हो सकती है। हिन्दू धर्म के प्राचीन महान ग्रंथों के अलावा बौद्ध, जैन आदि धर्मों के अनेक मूल धार्मिक ग्रंथ भी संस्कृत में ही हैं। संस्कारी जीवन की नींव संस्कृत वर्तमान समय में भौतिक सुख-सुविधाओं का अम्बार होने के बावजूद भी मानव-समाज अवसाद, तनाव, चिंता और अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त है , क्योंकि केवल भौतिक उन्नति से मानव का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है । इसके लिए आध्यात्मिक उन्नति अत्यंत जरूरी है। जिस समय संस्कृत का बोलबाला था उस समय मानव-जीवन ज्यादा संस्कारित था। यदि समाज को फिर से वैसा संस्कारित करना हो तो हमें फिर से सनातन धर्म के प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का सहारा लेना ही पड़ेगा।

200 विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ायी जा रही है
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वर्तमान में ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और कोलम्बिया जैसे 200 से भी ज्यादा लब्ध-प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ायी जा रही है। नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं माना जाता है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं।

भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए संस्कृत का उत्थान आवश्यक
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दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है। जो हैं भी वहाँ संस्कृत केवल साहित्य और कर्मकाण्ड तक सीमित है विज्ञान के रूप में नहीं। भारत को विश्वगुरु और विश्व में सिरमौर बनाने के लिए संस्कृत के पुनरुत्थान की आवश्यकता है। क्योंकि संस्कृत हमारी विरासत है और उस पर हमारा ही जन्म-सिद्ध अधिकार है।
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शनिवार, 30 जुलाई 2016

उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय

!!!---: उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय :---!!!
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अधिसूचना संख्या 486/विधायी एवं संसदीय कार्य/2005 द्वारा उत्तराखण्ड शासन ने हरिद्वार में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की। उत्तराखंड के वे समस्त महाविद्यालय जो पूर्व में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से सम्बद्ध थे, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गए। आज इनकी संख्या बावन (52) है। ज्ञातव्य है कि उत्तराखण्ड राज्य में देवभाषा संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का स्थान प्रदान किया गया है।

उाराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य
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1.राज्य गठन के उपरान्त सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों को राज्य के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत अधिनियमों/परिनियमों के प्राविधानानुसार व्यवस्थित करना।

2.प्राचीन परम्पराओं के साथ–साथ प्राच्य एवं पाश्चात्य ज्ञान–विज्ञान का समन्वय।

3.भारतीय संस्कृति के साथ–साथ अन्य संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन अनुसंधान। मानव संस्कृति और भारत की राष्ट्रीय एकता की सर्वातिशय सशक्त सूत्र संस्कृत के अनुसंधान, तुलनात्मक भाषा विज्ञान, नृवंश विज्ञान के अध्ययन की धारणाओं में परिष्कार एवं नवीन उद्भावनाएं प्रस्तुति।

4.प्राच्य भाषाओं एवं उनसे सम्बन्धित विभिन्न विषयों के अध्ययन अध्यापन की परम्परा कायम रखना।

5.संस्कृत साहित्य में निहित चिंतन पद्धति से आधुनिक समकालीन समाज के जीवन की चुनौतियों, समस्याओं के समाधान खोजने के प्रयास हेतु अनुसंधान।

6.वेदोपनिषदों सहित संस्कृत के उत्कृष्टतम ग्रंथों में निहित वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक विचारों का समेकन, विशेषकर गणित, नक्षत्र विज्ञान, कृषि विज्ञान, नृतत्व शास्त्र, प्रबन्धन, लोक प्रशासन, राजनय आदि विविध क्षेत्रों की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी रूपों में प्रस्तुति, ताकि वैदिक एवं प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के समन्वय के माध्यम से वैज्ञानिक ज्ञान का समादर एवं समावेश किया जा सके। विज्ञान के ‘रूद्र’ और साहित्य के ‘शिव’ तत्व का समष्टिगत कल्याण की दृष्टि से अंकन किया जाय।

7.वैदिक साहित्य और संस्कृत के श्रेष्ठ लौकिक साहित्य, पालि एवं प्राकृत के महत्वपूर्ण ग्रन्थों का समस्त भारतीय भाषाओं की लिपियों में प्रकाशन एवं अनुवाद।

8.संस्कृत के श्रेष्ठ साहित्य, पाम्परिक अनुष्ठानों, सांस्कृतिक पक्षों की दृश्य-श्रव्य माध्यम से प्रस्तुति।

9.संस्कृत को रोजगारपरक पाठ्यक्रमों के माध्यम से अधिकाधिक सम्बद्ध करने के प्रयास।

10.राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठियों/कार्यशालाओं/पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों के माध्यम से संस्कृत के अधुनातन ज्ञान–विज्ञान से विश्वविद्यालय के छात्राध्यापकों को परिचित कराना।

11.भारत सरकार/विश्वविद्यालय अनुदान आयोग/अन्य प्रदेशों की सरकारों के सहयोग से सृजन पीठ / शोध पीठ / अध्ययन पीठों की स्थापना।

12.उाराखण्ड की संस्कृति का व्यापक अध्ययन और शोध।

13.विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त प्रमाणपत्रों/उपाधियों का भारतीय विश्वविद्यालयों एवं विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ विश्वस्तरीय प्रत्यायन।

14.अखिल भारतीय एवं राज्याधीन सेवाओं की प्रतियोगिता परीक्षाओं हेेतु संस्कृत को लोकप्रिय बनाना।

15.भारतीय संस्कृति की मूल चेतना ‘संस्कृत’ के महत्व से युवा पीढ़ी को अधिकाधिक जोड़ने की दिशा में प्रभावी एवं सार्थक प्रयास जिससे अति भौतिक वाद की अंधी दौड़ की चकाचौंध में युवा वर्ग भारतीय सांस्कृतिक विरासत से बिल्कुल विमुख न हो जाय।

16.कार्यपरिषद के विनिश्चय के अनुसार राष्ट्रीय अभियोग्यता परीक्षा (नेट) की तैयारी हेतु संस्कृत छात्रों के लिए प्रावधान निर्धारित किये गये है।

पाठ्यक्रम एवं पाठ्यविषय
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विश्वविद्यालय परिसर में शैक्षिक सत्र 2007–08 से साहित्य, दर्शन, नव्यव्याकरण आदि परम्परागत विषयों में अध्ययन–अध्यापन कार्य प्रारम्भ हो गया है। वर्तमान समय की प्रासंगिकता को देखते हुए विश्वविद्यालय द्वारा समानान्तर रोजगार परक पाठ्यक्रम भी प्रारम्भ किए गए है। जिसमें योग पाठ्यक्रम हेतु छात्र–छात्राओं ने काफी रुचि दिखाई है। विश्वविद्यालय अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परम्परागत स्नातक/स्नातकोत्तर स्तरीय पाठ्यक्रमों का संचालन करता है। इन पाठ्यक्रमों का अध्ययन–अध्यापन सम्बद्ध विद्यालयों/महाविद्यालयों में होता है और विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। इसमें अनिवार्य विषय के रूप में संस्कृत–भाषा और व्याकरण, हिन्दी तथा वैकल्पिक विषय के रूप में ‘क’ वर्ग में शास्त्रीय विषय तथा ‘ख’ वर्ग में आधुनिक विषयों का समावेश है। साथ ही अतिरिक्त विषय के रूप में अंग्रेजी है।

स्नातक पाठ्यक्रम
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शास्त्री – यह स्नातक पाठ्यक्रम तीन वर्ष का है, जिसमें प्रथम तथा द्वितीय वर्ष में संस्कृत भाषा–साहित्य और सामान्य दर्शन तथा हिन्दी अनिवार्य विषय है। वैकल्पिक विषयों के दो वर्ग है। ‘क’ तथा ‘ख’ प्रत्येक वर्ग से एक विषय का अध्ययन अपेक्षित है। ‘क’ वर्ग– ऋग्वेद, शुक्लयजुर्वेद, कृष्णयजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद, धर्मशास्त्र, प्राचीन एवं नव्यव्याकरण, ज्योतिष (सिद्धान्त, गणित एवं फलित), साहित्य, पुराणेतिहास, वेदान्त, दर्शन, सांख्य योग, भाषा विज्ञान। ‘ख’ वर्ग– इतिहास, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, भूगोल, विज्ञान, गृहविज्ञान, नेपाली, राजनीति विज्ञान।

अतिरिक्त विषय– अंग्रेजी।
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स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम
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आचार्य– यह पाठ्यक्रम परम्परागत आधार पर द्विवर्षीय है। जिसमें स्नातक पाठ्यक्रम के सभी ‘क’ वर्गीय विषयों का अध्ययन–अध्यापन होता है।

व्यावसायिक पाठ्यक्रम
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वर्तमान में पी0जी0 डिप्लोमा इन योग, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, कर्मकाण्ड एवं पौरोहित्य पत्रकारिता एवं जनसंचार, पाण्डुलिपि एवं पुरालिपि विज्ञान, ग्रन्थालय विज्ञान (बी0लिब्0, एम0लिब्0) पी0जी0 डिप्लोमा संगणक (सभी एक वर्षीय अर्थात् दो सेमेस्टर) तथा योगाचार्य (द्विवर्षीय अर्थात् चार सेमेस्टर) का संचालन विश्वविद्यालय परिसर में किया जा रहा है।

कुलसचिव, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग, बीएचईएल मोड़, पोस्ट ऑफिस-बहादराबाद-249402

फोन : 01334-259110
ई-मेल : uttarakhandsvv@gmail.com
वेबसाइट : www.usvv.ac.in



Founded: April 21, 2005

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