मंगलवार, 26 जुलाई 2016

नासा में संस्कृत की क्लास

!!!---: नासा में संस्कृत की क्लास :---!!!
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आँखें खोल देने वाली खबर । देखों हम कितने सेक्युलर हैं कि अपने ही ज्ञान से नाक भौं सिकोडते हैं और अमेरिका हमारे ज्ञान से लाभ उठा रहा है । सेक्युलरिजम के चक्कर हम अपने ज्ञान, परम्परा, संस्कृति, सभ्यता और अपनी जडों से कटते जा रहे हैं, भारतीय नेताओं सम्भल जाओ, नहीं तो पछताने और रोने के अलावा कुछ नहीं बचेगा ।
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (नेशनल एकेडमी फॉर स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) में भर्ती होने वाले वैज्ञानिकों के लिए प्रशिक्षण काल में 15 दिन की संस्कृत की कक्षा लगती है। इसमें आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे भारत के वैज्ञानिकों की ओर से दिए गए वैज्ञानिक सिद्धांत के अलावा मय दानव का दिया गया सूर्य सिद्धांत भी पढ़ाया जाता है। सूर्य सिद्धांत में ढाई हजार वर्ष पहले सौरमण्डल के सम्बन्ध में दिए गए तथ्य और आज के वैज्ञानिक तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन होता है।

नासा के अतिथि वैज्ञानिक, दिल्ली के डॉ. ओमप्रकाश पाण्डेय ने जोधपुर प्रवास के दौरान बताया कि भारत का खगोल विज्ञान इतना अधिक समृद्ध था कि उसे अब वेद और वेदांग के जरिए वैज्ञानिक सीख रहे हैं। मय दानव ने 500 बीसी में सूर्य सिद्धांत के जरिए बताया था कि पृथ्वी अपनी धुरी के साथ सूर्य के चारों और भी चक्कर लगाती है।

मय दानव ने एक साल की अवधि 365.24 दिन बताई। वर्तमान वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार इसमें केवल 1.4 सैकेण्ड का ही अन्तर है। मय दानव ने बुध से लेकर सभी ग्रहों और पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुके होने की जानकारी दी थी। मय दानव का सिद्धांत आर्यभट्ट और वराहमिहिर की लिखी पुस्तकों में भी है।

मन को वाईफाई से जोडऩे में जुटे वैज्ञानिक
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इसरो से जुड़े व नब्बे के दशक में प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे डॉ. पाण्डेय ने बताया कि वे और ब्रिटेन की वैज्ञानिक दाना जौहार चेतना पर काम कर रहे हैं। ऊर्जा वास्तव में जड़ है। वह केवल चेतना द्वारा नियंत्रित होती है। निर्जीव नजर आने वाले कुर्सी व पत्थर में भी चेतना है। किसी भी पदार्थ के एक सेंटीमीटर के एक अरबवें हिस्से में परमाणु होता है।

इस परमाणु का दस लाख वां हिस्सा नाभिक है जिसमें प्रोटोन व न्यूटॉन होते हैं। नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन कण 85000 मील प्रति सैकेण्ड की रफ्तार से चक्कर लगाते हैं। इस नाभिक व इलेक्ट्रॉन को मुक्त करने पर ऊर्जा निकलती है।
उन्होंने बताया कि अगर आप एकाग्र होकर किसी की मानसिक तरंग को पकड़ते हैं तो दूर बैठे दो व्यक्ति भी मन-ही-मन आपस में बात कर सकते हैं। यह आज के वाईफाई सिस्टम जैसा है। वर्तमान में मोड्यूलेटर माइक्रोवेव तरंगों सहित अन्य तरंगों को सिग्नल के रूप में ग्रहण करता है, जबकि मन-की-मन से बात मानसिक तरंगों से होती है।

8 हजार साल पहले 360 दिन का होता था एक साल
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डॉ. पाण्डेय ने बताया कि वेदों के अनुसार आठ हजार साल पहले पृथ्वी अपने अक्ष पर 22.1 डिग्री झुकी हुई थी (वर्तमान में 23.5 डिग्री पर झुकी है) तब एक साल 360 दिन का होता था। वर्तमान में 2016 एडी है। सन् 11800 एडी आने पर पृथ्वी 24.5 डिग्री झुक जाएगी तब एक साल 368 दिन का होगा।

अब यूनिवर्स नहीं मल्टीवर्स
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वैज्ञानिक खोजों के साथ अब ब्रह्माण्ड यानि यूनिवर्स नाम का अस्तित्व खत्म हो चुका है। कई सारे ब्रह्माण्ड मिलने से अब इसे यूनिवर्स की जगह मल्टीवर्स कहा जाने लगा है। डॉ. पाण्डेय ने बताया कि हमारे चारों ओर 9 खरब आकाशगंगा हैं। पृथ्वी की आकाशगंगा के एक छोर से तीन लाख किलोमीटर प्रति सैकेण्ड की रफ्तार से यात्रा करें तो एक लाख वर्ष में हम एक आकाशगंगा के दूसरे छोर पर पहुंच पाएंगे।

अंतरिक्ष व पृथ्वी के बारे में तथ्य
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- एक आकाशगंगा यानी ब्रह्माण्ड की 14 भुजाएं हैं। एक भुजा में हमारे जैसे 200 से 300 सौरमण्डल हैं।

- सूर्य के चारों ओर 3570 करोड़ किलोमीटर की परिधि है, जिसमें आने वाले वस्तु को वह अपनी ओर खींचता है।

- हमारी पृथ्वी 4.54 अरब वर्ष पहले अस्तित्व में आई।

- करीब 3.8 अरब वर्ष पर पृथ्वी पर प्रकाश संश्लेषण के जरिए जीवन की शुरुआत हुई।



- अमरीकी वैज्ञानिकों को हाल ही में भारत में शिवालिक की पहाडि़यों में 2.54 वर्ष पुराने मानव कंकाल मिले हैं जो ब्रिटेन के डार्विन के सिद्धांत को खारिज करते हैं।
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